उन्माद



उन्माद का मतलब ही हिंसा है। तब भला उन्माद फैलाने का मतलब क्या है चाहे वह किसी भी रूप में फैलाया जाए। यही वजह है कि सत्ता की सीढ़ी के लिए उन्माद फैलाने की कोशिश की गई। चाहे गाय का मामला हो या गंगा सफाई का मामला हो । मोदी सरकार जान चुकी थी कि राममंदिर का मुद्दा लोगों को प्रभावित नहीं करने वाला है इसलिए हिन्दू वोट के धु्रवीकरण के लिए आरएसएस के हिन्दुत्व को नकार कर सावरकर के हिन्दुत्व को लाया जाए। इसलिए प्रज्ञा ठाकुर जैसों को टिकिट दी गई और यह सब अचानक नहीं हुआ।
यही वजह है कि काफी हाउस में रोज दर्जनों मुसलमानों के साथ गपशप करने वाला राकेश अचानक सोशल मीडिया में हिन्दुत्व को लेकर पोस्ट करने लगता है कांग्रेस को वोट देने वाले अपने डीएनए टेस्ट करा लें। या न्यूजीलैंड से लेकर लंका तक में होने वाले धमाके में मुसलमान ही क्यों है? राकेश के इस पोस्ट से वे लोग भी असहज होने लगे जो रोज उसके साथ उठते बैठते थे। पाकिस्तान थर थर कांपने लगा है। हिन्दू आतंक कहने वाला दिग्विजय सिंह को बुरी तरह हराओं। यह सब पोस्ट कहीं न कहीं सामाजिक ताना-बाना को तोडऩे वाला था।
आंतक की वहीं परिभाषाएं दी जाने लगी जिससे हिन्दु वोटों का धु्रवीकरण हो। भले ही आपसी संबंध न बचे। इसकी परवाह भी नहीं की जा रही थी। नफरत इस ढंग से फैलाई जाती थी जिसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती है। तभी तो एक दिन राकेश ने खुले आम घोषणा कर दी कि यदि उसके बाप भी कांग्रेस से चुनाव लडेंग़े तो वोट नहीं दूंगा।
भाषा का स्तर लगातार गिरता जा रहा था और इस उन्माद को फैलाने में भीतर ही भीतर खाण्डे और राठी हवा दे रहे थे। हालांकि वे उपर से तटस्थ दिखाई देते थे लेकिन धीरे धीरे यह पर्दे भी खुलने लगा था  कि पिल्ले हो या राकेश इन्हे खाद-पानी गुजराती राठी ही दे रहा है। खाण्डे का तो बड़ा भाई ही भाजपा में था और मंत्री का खासमखास माना जाता था।
सवाल यह नहीं था कि इसका अंत कैसे होगा? सवाल यह था कि आखिर उन्माद फैलाने के बाद भी सत्ता हासिल हो जाने से राकेश-पिल्ले या उन तमाम लोगों को फायदा क्या था?
राकेश के मुस्लिम आंतकवाद की अपनी थ्योरी थी। वह कभी शाखा गया था या नहीं यह नहीं मालूम लेकिन वह शाखा जाने का दावा जरूर करता था। वह अपने हिन्दूत्व को लेकर खुद ही कन्फ्यूज था। यही वजह है कि उसका दावा था कि जहां भी मुस्लिम आबादी 20 फीसदी से अधिक है वहां अशांति है। वह अपने दावे को सच साबित करने उन प्रदेशों या देशों का उल्लेख अपनी सोशल साईट पर करते रहता था। यह अलग बात है कि उसे जवाब देने वाले दो चार ही लोग रहते थे। जो लगातार उससे जुड़े थे। लेकिन वह अपने में आत्ममुग्ध था उसे लगता था कि वह जीत रहा है उसका हिन्दुत्व जीतेगा?
वह पहले भी बहस में मुस्लिम आतंकवाद का जीक्र बेबाकी से करता था। एक बार कमल ने उससे कहा था कि इस देश में धर्म और जाति के नाम पर आतंक फैलाकर कोई जीत नहीं सकता और आंतक को कोई धर्म या जात नहीं होता।
कमल के मुताबिक तो आमची मुंबई, आपला मानुष, उड़ीसा में मारवाड़ी भगाओं आंदोलन, कश्मीरी पंडितो का पलायन, 1984 के दंगे से लेकर आखलाक और रोहित वेमुला तक आतंकवादी घटनाएं थी और इस लिहाज से यदि धर्म देखा जाए तो हिन्दु कहां नहीं थे। क्या सिर्फ बम और बंदूक से की गई वारदात ही आंतकवादी घटनाएं है। धर्म और जाति के नाम पर उन्माद फैलाकर कत्लेआम करना आतंकवादी घटना नहीं है।
लेकिन कमल के इन तर्कों को कोई सुनने  वाला नहीं था लेकिन इससे आगे जाकर मोहल्ले के गुण्डों का आतंक को भी देखे जाने की जरूरत थी।
किस तरह से सत्ता के लिए उन्माद फैलाये जा रहे थे वह शर्मसार कर देने वाला था लेकिन हिन्दुत्व के कथित रक्षकों के लिए यह मायने ही नहीं रखता कि जिस आतंक का जीक्र वे कर रहे है, उससे ज्यादा लोग तो हर साल नम्सली घटना में मारे जाते है। ईलाज के अभाव में मर जाते है या सड़क दुर्घटना में मारे जाते हैं। मोहल्ले के गुण्डों के हाथो कितने घर उजड़ जाते है कितने लोग मरे है और इसमें किन धर्मों के लोगों का हाथ अधिक होता है क्या यह किसी से छिपा है। फिर आतंकवाद की परिभाषा कैसे अधूरा गढ़ा गया। क्या आतंकवाद को नये सिरे से परिभाषित करने की जरूरत नहीं है।
धर्म और समाज के नाम पर फैलाये जाने वाले उन्माद से मरने वालों की तादात किसी भी आतंकवादी घटना से अधिक होने लगी है। गाय के नाम पर कितने ही लोगों को पीट-पीट कर मार डाला गया। दलितों को सिर्फ घोड़ी चढऩे के नाम पर उन्मादी होते भीड़ क्या हिन्दुओं की नहीं है। तब इस उन्माद को फैलाने वालों पर सरकार की चुप्पी से हैरान और परेशान क्यों नही होना  चाहिए।

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