कॉफी हाऊस

कवर पेज और भूमिका लिखने के बाद किताब के अध्याय लिखने बैठा तो सोचने लगा कि इसकी शुरुआत कहाँ से करूँ
हालाँकि देश में जो हालात है शुरुआत वहाँ से भी की जा सकती है लेकिन फिर मुझे लगा शुरुआत वहाँ से की जाय जहाँ हम रोज़ उठते बैठते है क्योंकि वह जगह भी तो नफ़रत का शिकार हुआ है
इसलिए शुरुआत काफ़ी हाउस से ही कर रहा हूँ ताकि इस सच के गवाह दर्जन भर से अधिक या यूँ कहूँ दो दर्जन से भी अधिक हैं...
1.
काफी हाऊस...
अचानक इस कंपकंपाती ठंड में गर्मी आ गई। काफी के प्याले वैसे के वैसे ही धरे रह गये। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर हुआ क्या?
कॉफी हाऊस का मैनेजर भी दौड़कर आया। कहने लगा धीरे बोलिये और भी ग्राहक हैं।
अचानक खामोशी छा गई। लेकिन पूरे काफी हाऊस की निगाह उस टेबल पर जमी हुई थी। पास बैठे असलम ने इस खामोशी को तोड़ते हुए कहा चलो बाहर चलते है। सिगरेट पी लेते है।
एक-एक कर रमेश, विनय और अजय बाहर चले गए लेकिन अकिल अब भी बैठा था। चेहरे पर बेहद गुस्सा और तनाव साफ दिख रहा था। किसी को कुछ नहीं समझ आ रहा था कि आखिर हुआ क्या?
अक्सर रोज कॉफी हाऊस में आकर दुनिया भर की बाते तो रोज होती थी हर विषय पर बात होती थी लेकिन इस तरह की नौबत कभी नहीं आई थी। अचानक यह सब कैसे हो गया।
अभी यह सवाल मैने अकिल से पूछा ही था कि वह मुझ पर ही टूट पड़ा। क्या यह अचानक हुआ है। नहीं यह सब अचानक नहीं हुआ है। पिछले कई हफ्तों से इनका व्यवहार मेरे प्रति बदला हुआ है। सरकार की गलतियों पर जब भी कोई सवाल उठाता हूं ये लोग मुझ पर टूट पड़ते है और आज तो बात तब बर्दाश्त से बाहर हो गई जब विनय ने मुझे पाकिस्तान चले जाने के लिए कह दिया।
मैने कॉफी का आर्डर दिया तो अकिल ने कह दिया कि मै नहीं पियूंगा। मैने कहा अरे भाई दूसरों का गुस्सा मुझ पर क्यों उतार रहे हो। उन भक्तों का तो रवैया ही यही है। उन्हें लगता है कि मोदी ही सब कुछ है तो क्या किया जा सकता है? वैसे बताओंगे हुआ क्या है।
अकिल का गुस्सा अभी भी शांत नहीं हुआ था। उसकी सांसे तेज थी और वह मुझ पर ही बरस पड़ा कि तुम भी तो दूर बैठे मजे ले रहे थे और अभी भी मजा ले रहे हो।तभी मुकेश और शकील भी आ गये। भीतर आते आते उन्होंने शायद हमारी बात सुन ली थी इसलिए आते ही पूछा क्या हो गया।
शकील का इतना पूछना था कि अकील ने एक कदम आगे जाकर कह दिया कि मुझे देशद्रोही कर दिया। तभी मुकेश ने कहा आखिर हुआ क्या है किसने देशद्रोही कर दिया।
मेरी कॉफी और एक खाली कप टेबल पर आ गई थी। मैने दूसरी कप में आधी कॉफी डालकर अकील की तरफ बढ़ाया तो उसने वह काफी मुकेश की ओर सरका दी। मैने कहा एक और मंगा लेते है लेकिन अकील का मूड उखड़ चुका था।
मुकेश के बहुत कुदेरने के बाद ही अकील ने बताया कि बालाकोट की घटना पर चर्चा हो रही थी। मैने सिर्फ यह कहा कि पाकिस्तान तो इस घटना में किसी नुकसान से इंकार कर रहा है। बस इसके बाद विनय सीधा हमलावर की तरह कहने लगा कि तुम देशद्रोही हो। पाकिस्तान की भाषा बोल रहे हो।
मैने बात संभालने के लिए कहा देखो अकील भाई। इन दिनों भक्तों से इस बारे में कुछ भी कहना ठीक नहीं है। उनकी आंखो में जो पट्टी बंधी है उसे हटा पाना मुश्किल है। इनसे दूर रहना ही अच्छा है।
कहने को तो अकील से मैने यह बात कर दी थी लेकिन मैं स्वयं जानता था कि यह कितना मुश्किल भरा फैसला होगा। क्योंकि पिछले 15-20 साल या इससे भी अधिक बरसों से हम सब कॉफी हाऊस के टेबलों को साथ-साथ गुलजार करते रहे हैं। क्या गर्मी क्या सर्दी बरसात हो या रायपुर बंद हो कॉफी हाऊस पहुंचना हमारी दिनचर्या में शामिल है और पिछले 7-8 माह से जिस तरह से सदस्यों में मोदी सरकार को लेकर खींचतान होने लगी। दूरियां बढऩे लगी। ऐसा कभी नहीं हुआ था। सब एक दूसरे की राजनैतिक पार्टियों के प्रति प्रतिबद्धताा को जानते-समझते रहे है। इसके बावजूद बहस की गरिमा रही लेकिन पिछले कुछ माह से जिस तरह से बहत होती वह अक्सर विवाद का रूप ले लेती थी।
मैं यह नहीं कहुंगा कि हर बार विवाद की वजह मोदी भक्ति रही लेकिन यह सच है कि उनकी भक्ति ने कुछ लोगों का दिमाग पर असर कर दिया था और वे मोदी सरकार के खिलाफ कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे। यहां तक कि मोदी की झूठ को रणनीति बताते थे या फिर कांग्रेस या दूसरे दलों की करतूत को सामने लाकर मोदी को सही साबित करने की कोशिश में झगड़ा करने तक उतारू हो जाते थे।
जैसे एक बार मैने ही पूछ लिया कि क्या भारत के प्रधानमंत्री को झूठ बोलना चाहिए? मेरा सवाल पूरा होते ही अजय मुझ पर टूट पड़ा क्या आप झूठ नहीं बोलते है।
मैने कहा कि उस पद की गरिमा की बात कर रहा हूं और आप मुझ पर आ रहे हैं यह कैसे उचित है तो वह कहने लगा मोदी के खिलाफ कोई बात नहीं सुनुंगा।
ऐसी कई छोटी-छोटी घटनाओं पर बहस विवाद का रूप लेने लगा और 15-20 सालों का माहौल तनाव में आ गया। टेबले अलग होने लगी। बातचीत तक बंद होने लगी। यहां तक कि एक-दूसरे को घृणा की दृष्टि से देखा जाने लगा था।
इस मौजूदा हालात में विधानसभा चुनाव तक तो हालात फिर भी  काबू में रहा लेकिन लोकसभा चुनाव के बिगुल बचते ही यह दूरी और भी बढ़ गई।
कोई किसी को न सुनने तैयार था और न ही समझने को ही तैयार था। दशक-डेढ़ दशक की मित्रता तार-तार हो चुकी थी। ऐसा लगने लगा था सब कुछ खत्म हो गया है। मुकेश ने कई बार कहा किसके लिए लड़ रहे हो वह काम नहीं आने वाला। स्वयं सोचो कि जिसकी वजह से ये तनाव है वह क्यों है। सालों की मित्रता खत्म हो गई यानी वह कितना गंदगी फैला रहा है जिसका असर यहां तक है।
लेकिन जो तनाव था वह बढ़ता ही जा रहा था। डर था कि कही नौबत हाथा पाई तक न पहुंच जाए। हालांकि इस नौबत से बचने ही टेबल अलग हो गये थे, बातचीत बंद हो गया था। यहां तक कि घरों में होने वाले कार्यक्रमों में भी चेहरा देखकर आमंत्रित किया जाने लगा था।
तय तो था कि सब फिर मिल बैठेंगे लेकिन दिलों में जो घाव लगा है क्या वह भर पायेगा। एक-दूसरे के प्रति प्रेम क्या वापस आयेगा।

टिप्पणियाँ

  1. सच बात लिखा है लेखक ने १००फीसदी , उन दिनों मै भी काफी हाउस(1975से) नियमित जाता है ! लेखक जो कि बहुंत सुलझा और दबंग है , ऐसे लेखक की कोई आलोचना करता है तो ये मिथ्या है !
    शुभ-कामनाओ के साथ -
    पुरुषोत्तम केला
    ( वरिष्ठ समाज सेवक रायपुर)

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