भूमिका
भूमिका
यह रिपोर्ट खुद के आसपास होने वाली घटना का ऐसा सच है जो हैरान कर देती है। स्वयं को सांस्कृतिक संगठन के तौर पर स्थापित इस संगठन से जुड़ी वह घटनाएं जो हमें सोचने पर मजूबर कर देती है कि हम आज भी किस पुरातन सदी से चिपके बैठे है। आदमी के भीतर की आहमियत को किस हद तक कैसे मारे जाने का उपक्रम होता है और अपनी सुविधानुसार परिभाषा गढ़ी जाती है ताकि अपना मतलब हल किया जा सके। आजादी के पहले और इसके बाद इस देश में क्या हुआ ? और किस तरह से राजनैतिक सत्ता ने भारतीय परम्परा से इतर अपना एजेंडा लागू करने की कोशिश में मानवता, नैतिकता, राष्ट्रभक्ति और मान्य परम्पराओं का चिरहरण किया। यह किसी से छिपा नहीं रहा लेकिन क्या यह सब हिटलर के राष्ट्रप्रेम से प्रेरित था?
पूरा देश जानता है कि जब किसी का इतिहास नफरत से भरा हो तो वर्तमान में उस बीज से प्रेम का कोपल फ़ुटने की उम्मीद ही बेमानी है फिर भी हम धर्म और राष्ट्रवाद की आग में उस पतंगे की तरह झुलसने तैयार हैं।
क्या हम राजनाति में दूसरी विचारधारा से असहमति पर हिसंक हो सकते है? क्या जो हमें पसंद नहीं उसे समूल नष्ट करके ही अपनी विचारधारा को आगे बढ़ा सकते है। क्या भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाया जा सकता है? क्या दूसरे धर्म को यहां रहने की ईजाजत नहीं दी जा सकती।
ऐसे कितने ही सवालों के जवाब खोजने होंगे। इस प्रयास में यदि किसी की भावना आहत हुई हो तो मेरी करबध्द प्रार्थना है कि इसे अन्यथा न लेकर सहद्यता का परिचय दें। क्योंकि मैने जो देखा वही लिखा।
- कौशल तिवारी
यह रिपोर्ट खुद के आसपास होने वाली घटना का ऐसा सच है जो हैरान कर देती है। स्वयं को सांस्कृतिक संगठन के तौर पर स्थापित इस संगठन से जुड़ी वह घटनाएं जो हमें सोचने पर मजूबर कर देती है कि हम आज भी किस पुरातन सदी से चिपके बैठे है। आदमी के भीतर की आहमियत को किस हद तक कैसे मारे जाने का उपक्रम होता है और अपनी सुविधानुसार परिभाषा गढ़ी जाती है ताकि अपना मतलब हल किया जा सके। आजादी के पहले और इसके बाद इस देश में क्या हुआ ? और किस तरह से राजनैतिक सत्ता ने भारतीय परम्परा से इतर अपना एजेंडा लागू करने की कोशिश में मानवता, नैतिकता, राष्ट्रभक्ति और मान्य परम्पराओं का चिरहरण किया। यह किसी से छिपा नहीं रहा लेकिन क्या यह सब हिटलर के राष्ट्रप्रेम से प्रेरित था?
पूरा देश जानता है कि जब किसी का इतिहास नफरत से भरा हो तो वर्तमान में उस बीज से प्रेम का कोपल फ़ुटने की उम्मीद ही बेमानी है फिर भी हम धर्म और राष्ट्रवाद की आग में उस पतंगे की तरह झुलसने तैयार हैं।
क्या हम राजनाति में दूसरी विचारधारा से असहमति पर हिसंक हो सकते है? क्या जो हमें पसंद नहीं उसे समूल नष्ट करके ही अपनी विचारधारा को आगे बढ़ा सकते है। क्या भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाया जा सकता है? क्या दूसरे धर्म को यहां रहने की ईजाजत नहीं दी जा सकती।
ऐसे कितने ही सवालों के जवाब खोजने होंगे। इस प्रयास में यदि किसी की भावना आहत हुई हो तो मेरी करबध्द प्रार्थना है कि इसे अन्यथा न लेकर सहद्यता का परिचय दें। क्योंकि मैने जो देखा वही लिखा।
- कौशल तिवारी
हिटलर बनने की की एक पूरी प्रक्रिया होती है ,ऐसे ही कोई हिटलर नही बनसकता हैं।जब वह अपने आप को एक आभासी वलय के दायरों में कैद करता है और प्रदत्त शक्तियों को अपने अनुसार परिभाषित कर जनसमुदायों पर स्वेच्छा से या अनिछ्छा से लादना चहता है ।
जवाब देंहटाएंबढिया
जवाब देंहटाएंटिप्पणी करने लायक तो नही हुआ हु लेकिन अपनी मार्यदा को लांघते हुए कह रहा हु।
जवाब देंहटाएंबहुत उमदा कौशल सर