अल्प-विराम -3
वाक्या बहुत पुराना नहीं है जब उड़ीसा में मारवाड़ी भगाओं अभियान चला। उड़ीसा के स्थानीय लोगों ने खूब हंगामा किया। मारकाट बलात्कार आगजनी सब कुछ हुआ। रातो रात सैकड़ो परिवार को उड़ीसा छोडऩा पड़ा। रायपुर के समता कालोनी में आज भी उनमें से दर्जनों परिवार रहते हैं। मामला तब बहुत सुर्खियों में रहा और विपक्षी पार्टियों ने बहुत हंगामा मचाया। इसके बाद शिवसेना ने पहले मुंबई फिर पूरे महाराष्ट्र में गैर मराठी लोगों के खिलाफ मोर्चा खोला यहां भी मार कुटाई से लेकर आगजनी हुई। असम में भी बिहारियों के खिलाफ कहर बपरा। ये सभी मामले उसी समय सुर्खियों में रहे लेकिन बाद में यह भी मुद्दा नहीं बना जबकि इन घटनाओं के हजारों पीडि़त भगाये जाने के बाद आज भी वापस नहीं लौटे। बस्तर में रमन सिंह की सरकार के दौरान सलवा जुडुम के नाम पर पांच सौ गांव उजड़ गये। यहां के हजारों आदिवासी आज भी राहत शिविरों में रह कर नारकीय जीवन जी रहे हैं लेकिन यह भी किसी राजनैतिक पाटी के एजेंडे में शामिल नहीं रहा। लेकिन दुर्भाग्य है कि कश्मीर में कश्मीरी पंडितो को भगाये जाने का मामला भारतीय जनता पार्टी और संघ के एजेंडे में है। कहने की जर
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें