फ़ैसले की वजह

फ़ैसले की वजह
कोई सोच भी नहीं सकता था कि फ़ैसला ऐसा आएगा , लेकिन फ़ैसला तो आ ही गया था । इस फ़ैसले ने कितने ही लोगों की नींद उड़ा दी । हलाकान कर देने वाली गर्मी में इस फ़ैसले का क्या मतलब हो सकता था , जो लोग सोचते थे मोदी की वापसी किसी भी हाल में नहीं होगी उनका अंक गणित धरा का धरा रह गया। ख़ुद भाजपा ए जो लोग नाउम्मीद पाले बैठे थे, वे भी इस कथित करिश्माई जीत से हैरान थे । जिस बंगाल और उड़ीसा से सत्ता की जादुई आँकड़े की भरपाई की उम्मीद की जा रही थी, उसकी ज़रूरत ही नहीं पड़ी। हाँ, लेकिन उड़ीसा बंगाल भी फ़ैसले के साथ थे ।
फ़ैसले को लेकर लोकतंत्र में सवाल उठाना ही ग़लत मान लिया गया है , इसलिए इस फ़ैसले पर सवाल उठाने से पहले ही भक्तों ने मज़ाक़ उड़ाना शुरू कर दिया था। हालत यह हो गई कि हिजड़े तक पर्दा करने लग गए । एक डर और नाउम्मीदी के बीच आए इस फ़ैसले की वजह क्या हो सकती है? सबके अपने दावे है , लेकिन खुलकर कहने के एतराज़ ने लोकतंत्र के इस सबसे बड़े देश में भविष्य के ख़तरे की ओर आगाह तो कर ही दिया है।
जीत एक ऐसा उन्माद है जो विरोधियों को बर्फ़ कर दे, लेकिन कभी न कभी तो इस फ़ैसले की वजह ढूँढी जाएगी ? एक पल तो इस फ़ैसले की वजह से लोकतंत्र पर मँडराते काले बादल भयावह दिखाई देने लगता है , लेकिन साझी विरासत की महान परम्परा में उम्मीद की किरण भी देखने वालों की कमी नहीं है ।
जीत और हार की वजह को लेकर सभी दल अपने तरीक़े से चिंतन भी कर रहे होंगे लेकिन इस फ़ैसले की वजह के कुछ कारण जो निकल कर आए है , उस पर भी बात होनी चाहिए । क्योंकि यह समय आँख बंद कर लेने का तो क़तई नहीं है , बल्कि हर उस व्यक्ति को इस फ़ैसले की वजह ढूँढनी चाहिए जो मानवता को सबसे बड़ा धर्म और धर्मनिरपेक्षता को लोकतंत्र का सबसे ज़रूरी औज़ार मानते हैं, इसलिए इस फ़ैसले की जो वजह है उस पर बात होनी ही चाहिए -
१ राष्ट्रवाद
मोदी सरकार की वापसी की यह पहली वजह है । दरअसल राष्ट्रवाद के नाम पर जिस तरह का खेल खेला जा रहा था , उसे पुलवामा कांड ने मुहर लगा दी और समुदाय विशेष को निशाना बनाने की यह कोशिश इसलिए भी सफल हुई क्योंकि विरोधी इस मामले को लेकर भीतर तक डरा हुआ था । इस देश में किसी की राष्ट्र्भक्ति को सरेआम चुनौती दी जा रही थी और इस आग में धर्मनिरपेक्षता झुलसता जा रहा था। इस राष्ट्रवाद ने भय बनाने का काम किया और इसकी संकीर्णता के चलते वह वर्ग भी उनकी बातों में आ गया, जिन्हें इससे कोई मतलब नहीं था। इसके लिए घुसपैठियों से लेकर गाय तक को मुद्दा बनाया गया । घुसपैठियों की सूची में वे लोग भी आ गए जो देश की नागरिक थे , लेकिन
घुसपैठियों के मुद्दे को इतना बड़ा बना दिया गया , कि देश निकाला की सूची  में आए भारतीयों की दर्द और पीड़ा के प्रति संवेदनहीन हो गए।यही हाल गाय को लेकर हुआ । लोगों को क़ानून हाथ  लेने  तक भड़काया गया , जिसकी वजह से उत्तरप्रदेश में तो पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की हत्या पर भी गौ प्रेमी ख़ुश होते रहे ।
सरकार के लिए मानवाधिकार का कोई मतलब ही नहीं रहा । मॉबलीचिंग के मामले को जानबुझकर इतना प्रचारित किया गया, मानो यह सब ठीक हो रहा है । वन्देमातरम और भारत माता की जय को ज़बरिया ज़ुबान में ठूँसा जाने लगा और विप्क्छ इस पर भी ख़ामोश रहा या तत्काल प्रतिक्रिया देकर अपने कर्तव्योंसे मुँह मोड़ लिया।
२ मीडिया
मोदी सरकार की वापसी का जो बड़ा कारण बना उसमें मीडिया की भूमिका से इंकार करने का मतलब सच से मुँह चुराना है । सरकार ने मीडिया को नियंत्रित करने का सभी तरीक़ा इस्तेमाल किया । बड़े मीडिया घरानो का मुँह धन से भर दिया गया जिससे सरकार का हित सध रहा था और जो लोग ऐसा करने से मना कर रहे थे , उन्हें डराया धमकाया गया, उनका मज़ाक़ उड़ाने का खेल खेला गया। यहाँ तक गोदी मीडिया का नया नाम तक सामने आ गया । सत्ता विरोधी ख़बरों को रोका गया, और अफ़वाह को हवा दी गई । यहाँ तक कि कश्मीर से लेकर भाजपा शासित राज्यों में बढ़ रहे अपराध में भी धर्म ढूँढा गया । सच तो यह है कि मोदी राज में आतंकवादी घटनाओं में ज़बरदस्त ईजाफ़ा हुआ। सीमा में और आतंकवाद के चलते मरने वाले सिपाहियों की संख्या भी कई गुणा बढ़ी , लेकिन इस पर बोलने की मनाही थी । वे सभी सच छुपा दिए गए जिससे सरकार की किरकिरी होती। ख़बरों को मेन्यूप्लेट किया गया और विरोध के स्वर को तवज्जो नहीं दी गई ।
३ भय का माहौल
बीते पाँच सालों में पूरे देश में एक भय का वातावरण निर्मित किया गया , हिंदुओ को झूठे आँकड़ो से समझाया गया कि मुसलमान इस देश के नहीं हो सकते या वे उस देश को मुस्लिम राष्ट्र बना देंगे। उनकी जनसंख्या जिस तेज़ी से बढ़ रही है वह हिंदुत्व के लिए ख़तरा है , जहाँ भी बीस फ़ीसदी से अधिक मुसलमान होते हैं, वहाँ अशांति हो जाती है , हिंदुओ का पलायन होता है । जनसंख्या बढ़ाने लवजेहाद किया जा रहा है और इस सबसे मोदी ही निपट सकता है।
हिंदू संस्कृति को नष्ट और भ्रष्ट किया जा रहा है, देखिए मोदी से मुसलमान कैसे भय खाते हैं।
धर्म और राजनीति का ऐसा घालमेल किया गया कि आम आदमी भ्रमित हो गया। इस देश में नागरिक होने की परिभाषाएँ ही बदल दी गई। जो भी सरकार की ग़लतियों का विरोध करता उन्हें देशद्रोही कहा जाता। असम में घुसपैठियों की आड़ में भारतीयों की प्रताड़ना की बात हो या गौ वंश की आड़ में सामूहिक हत्या। राममंदिर विवाद हो या हिंदू आतंकवाद का मामला हो , यहाँ तक कि नोटबंदी , जीएसटी और राफ़ेल जैसे मामलों में भी सवाल उठाने वालों को देशद्रोही बता दिया जाता। और इसके लिए पाक को मदद पहुँचाने का आरोप लगाकर एक ऐसा भय का वातावरण तैयार किया गया, ताकि कोई सरकार की मनमानी पर बोल ही न सके। सुप्रीम कोर्ट की जजों का मामला हो या सीबीआई या दूसरे संवैधानिक संस्थानो में प्रहार भी इसी बात के संकेत थे ।
४ बुद्धिजीवियों पर प्रहार
असहमति को दबाने के लिए सरकार ने हर स्तर पर प्रयास किया। गौरी लंकेश से लेकर दाभोलकर की हत्या तक हुई। बुद्धिजीवियों को हिंदू विरोधी साबित करने का यह एक ऐसा दौर था, जो फाँसीवाद की ओर अग्रसर का संकेत था। जो भी तपका चाहे वह साहित्यकार हो, मानवाधिकार वाले हो या फ़िल्मी कलाकार हो या खेल हस्तियाँ , जो भी सरकार से असहमति की बात करता उन्हें डराया धमकाया गया और देशद्रोही या पाक परस्त बतलाया गया। यह सब सुनियोजित तरीक़े से हुआ, और यह याद रखना चाहिए कि जिस देश में भी कला या साहित्य की हस्तियों पर प्रहार हुआ है, वहाँ लोकतंत्र की हत्या हुई है। नागरिक अधिकारो की हत्या हुई है, और इस पर आम आदमी  चुप्पी भी घातक रही है।
५ विरोधियों पर प्रहार
लोकतंत्र के लिए सबसे ख़तरनाक बात जो रही वह है, विरोधियों की बातों पर उन्हें पाकपरस्त , मुस्लिम परस्त और देशद्रोही क़रार देना। ऐसा माहौल बनाया गया कि इस देश का नेतृत्व कोई दूसरा करने लायक ही नहीं है , किसी पार्टी के नेता को मंदबुद्धि साबित करने के लिए पूरी ताक़त लगा दी गई तो किसी को मुस्लिम परस्त साबित करने का माहौल बना दिया गया। विरोधी दलो के नेताओ में भय उत्पन्न करने सीबीआई, आयकर विभाग का सहारा लिया गया तो स्वयम् को कट्टर हिंदू या हिंदुओ का हितैषी बताने प्रज्ञा ठाकुर जैसो को टिकिट दी गई। विरोधी दलों के उन नेताओ को भाजपा में शामिल किया गया जिन पर पहले वे ही भ्रष्टाचारी का आरोप लगाते रहे।
इसके अलावा भी राज्यवार, भाषावार अलग अलग वजहें होंगी , लेकिन इस फ़ैसले की एक और सबसे बड़ी वजह जो सामने आई है , वह है , कांग्रेस का गांधीवाद से दूर होकर सत्ता के प्रति बड़ता प्रेम है, जिसने उनमें आंदोलन की उस ताक़त को कमज़ोर कर दी है, जिस ताक़त के सहारे उसने आज़ादी की लड़ाई में अंग्रेजो के पसीने छुड़वा दिए हैं। अब तो कांग्रेसी आंदोलन भी करते है तो वह सिर्फ़ सांकेतिक होता है यानी मीडिया वाले आकर फ़ोटो शोटों खींचे और धरना या आंदोलन समाप्त ।
और अंत में ....
नफ़रत की फ़ैक्टरी की चिमनियो से धुआँ निकल रहा है ...

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