पागलपन

पागलपन
उस दिन सूरज कुमार को दूर टेबल पर बैठे देखा तो मैं खुद को रोक नहीं पाया। बिल्कुल अकेले।
मैने पास जाकर पूछा भी सब ठीक ठाक है तो उसने सामने बैठने का ईशारा करते हुए कुछ खास नहीं। बस अकेले बैठने की इच्छा थी। मैने कहा तो चला जाता हूं। आप बौद्धिक चिंतन करे। फायदा ही होगा।
उसने हंसते हुए कहा था बौद्धिक चिंतन की बात जब छेड़ ही दिये हो तो एक ऐसी चीज बताता हूं जो मुझे भी अटपटा लगता है।
मैने पूछा संघ के बारे में कुछ बता सकते हो तो बताओं। उसने इधर उधर देखा फिर धीरे से कहा तुम्हे क्या लगता है कि हम बदल जायेंगे। संघ की शाखा और बौद्धिक शिविर नियमित जाने वाले कभी नहीं बदलते।
मैने कहा जानता हूं, तुम्हारे नफरत की फैक्टरी को।
मेरी बात सुनकर उनके चेहरे में नाराजगी दिखी लेकिन उसने उसे शब्दों में जाहिर करने की बजाय कहा संघ का सारा कार्यक्रम निर्धारित अनुशासन से बंधा है। वह यहां आने वालों को बौद्धिकता और शब्दों के जाल में ऐसा हिन्दू तैयार करता है जो कभी भी डिग नहीं सकता। दिमाग में हर पल हिन्दूत्व और राष्ट्रवाद ही रहेगा। विपरित परिस्थितियों में भले वह खामोश हो जाए पर हिन्दूत्व से बाहर नहीं निकलेगा।
मैने कहा कि यह तो उसके साथ अन्याय है। वह मानव कहां रह गया। फिर वह संवैधानिक पद पर बैठेगा तो सभी धर्मो के साथ न्याय कैसे करेगा और तब हमारे संवैधानिक ढांचे का क्या होगा। एकता में अखंडता और सामाजिक ताना बाना बिखर जायेगा। देश अशांत हो जायेगा। यह तो पागलपन है।
कुछ भी हो लेकिन हिन्दूत्व के अलावा कुछ भी स्वीकार्य नहीं। यह कहते हुए सूरज कुमार ने कहा जिन्दगी बहुत लम्बी होती है इसलिए संघ यह काम आराम से करता है वह अपने नहीं आने वाली पीडिय़ों की भलाई के लिए हड़बड़ी नहीं करता। यह अलग बात है कि राजनीति में जाने वालों में धीरज टूट जाती है और इस हड़बड़ी का परिणाम संघ को भोगना पड़ा है।
मैं सूरज कुमार के इस खुलासे से हैरान था कि आखिर यह सब हो क्या रहा है। मैने पूछा भी यदि इस देश को हिन्दू राष्ट्र घोषित कर भी दिया जायेगा तो उससे आम लोगों के जीवन में क्या फर्क पड़ जायेगा। उन्हें तो उसी तरह कमाना-खाना है।
लेकिन सूरज मेरे सवालों का जवाब देने की बजाय अपनी रौ में कहता जा रहा था। भले ही तुम इसे पागलपन कहते रहो लेकिन हमारी पहचान हमारी सभ्यता और संस्कृति है। यह पूरी दुनिया में अनूठा और सर्वश्रेष्ठ है। इसलिए इस सर्वश्रेष्ठ संस्कृति और धर्म को भ्रष्ट करने की कोई भी कोशिश सफल नहीं होने दी जायेगी।
कांग्रेस और सेक्यूलरों ने इस देश का बहुत नुकसान किया है। खासकर हिन्दुत्व पर उनका प्रहार जानबुझकर होता है। वे मुस्लिम या दूसरे धर्म के आतंक पर कुछ नहीं कहते लेकिन यदि दूसरे धर्म के लोगों को खरोच भी आती है तो बवाल मचा देते है।
मानवतावाद के फेर में कश्मीर का जो बुरा हाल है किसी से छिपा नहीं है। तुम भी समझने को तैयार नहीं हो कि इस देश को धीरे धीरे मुस्लिम देश बनाया जा रहा है। मैं हैरान था कि बात की शुरूआत कहां से हुई थी और सूरज कुमार इसे कहां पहुंचाने आमदा है। मैने कहा यह सब झूठ है। एक दो घटनाओं को पागलपन के हद तक प्रचारित करना ठीक नहीं है। इतिहास को मानने की बजाय उससे अलग किस्से गढऩा गलत है।
सूरज कुमार ने कहा इतिहास ही गलत लिखा गया है। वामियों ने जानबुझकर सच को छुपाया है और वही बाते लिखी है जिससे हिन्दुत्व की किरकिरी हो या हिन्दुत्व को नुकसान पहुंचे। हमें सच से इतिहासकारों ने दूर रखा है और जब इसका खुलासा हो रहा है तो हिन्दुत्व के विरोधियों को बुरा लगता है और वे बवाल मचाते है।
मैने सूरज कुमार से पूछ लिया यदि जो पढ़ाया जा रहा है वह इतिहास झूठ है तो इतिहास की बात आप लोगों को कौन बताता है। यानी लिखी बातों में झूठ या तोड़मोड़ की गई है इसका प्रमाण भी तो हो।
लेकिन सूरज कुमार तो शायद यह निश्चत करके बैठा था कि वह आज मुझे हरा कर ही रहेगा। और मै जानता था कि यह उसके पागलपन के सिवाय कुछ नहीं था। झूठ के सहारे आप किसी को अधिक दिनों तक बरगला नहीं सकते। लेकिन सूरज कुमार मुगल शासन के जजिया कर से होते हुए औरंगजेब के आतंक तक आ गया था. आमतौर मेरी नजर में सूरज कुमार नरम जबान के थे लेकिन इतनी कड़वाहट देखकर मैं परेशान था। इसलिए धीरे से पूछा क्या यह सब संघ में बताया जाता है।
उसने इस प्रश्न को भी नजरअंदाज कर दिया था और कहने लगा था कि अब सर से ऊपर पानी चढऩे लगा है। भारत तेरे टूकड़े होंगे जैसे नारे अब हम सहने वाले नहीं है। ये लोग मारकाट की भाषा ही समझते है और मोदी सरकार की वापसी हुई तो देखना हम सबको ठीक कर देंगे।
मैं कहा कि इस देश में कानून भी है तो उसने तुरंत कहा जब जनता तय करेगी तो कानून धरा का धरा रह जायेगा। गौमांस वाले मामलों में सेक्यूलर जान चुके है।
मैने फिर प्रतिवाद करते हुए कहा कि सिर्फ झूठ और अफवाह के चलते आप लोग यह ठीक नहीं कर रहे हो। ऐसे में तो देश ही टूट जायेगा।
अभी मेरी बात पूरी ही नहीं हुई थी कि सूरज कुमार ने उत्तेजित होते हुए कहा हम गांधीवादी नहीं है जो देश टूटते अनशन या सत्याग्रह में बैठ जाए हमारी सरकार हिन्दू देश घोषित करके ही रहेगा।
मुझे लगा अब चुप हो जाना चाहिए क्योंकि यह अवधारणा ही पागलपन है।
मैं सिगरेट पीने का बहाना कर कुर्सी से उठ गया था। वह मुझे बिठाकर और भी बहुत कुछ सुनाना चाहता था लेकिन मेरी सुनने की शक्ति सचमुच जवाब दे चुकी थी।
सिगरेट पीकर वापस आया तो सूरज कुमार अपनी जगह पर नहीं था। शायद वह भी चला गया था।
मैं सामने ही बैठ गया और मुझे काफी की तलब लग रही थी। इसलिए वेटर को आर्डर देने ही वाला था कि संतोष जी आ
गये तो मैने वेटर को दो कॉफी का आर्डर दे दिया। संतोष जी वैसे भी पूरी कॉफी पीते थे और मुझे भी पूरी कॉफी की जरूरत महसूस हो रही थी।
थोड़ी देर इधर उधर की बात होते रही और मैं मन ही मन सूरज कुमार के पागलपन का जिक्र करूं या न करूं यही सोच रहा था कि संतोष जी ने खुद ही बादल और रडार का जिक्र करते हुए कहा पता नहीं ये बात 2014 के चुनाव में नरेन्द्र मोदी कहते तो क्या होता।
मैने भी मुस्कुराते हुए कहा यह सब तो चलता रहेगा लेकिन आज सूरज कुमार ने जो कुछ कहा उससे मेरी चिंता बढ़ गई है। यह कहते मैने सूरज कुमार से हुई चर्चा का खुलासा कर दिया।
पूरी बात गंभीरता से सुन रहे संतोष जी के चेहरे पर उतार चढ़ाव मैं देखना चाह रहा था लेकिन वे बिल्कुल सपाट भाव से मेरी बात सुनने के बाद कहा जिन्दगी हमेशा लम्बी नहीं होती। सूरज कुमार के लफ्जों का मतलब सिर्फ उतना ही है जितना वे कहते हैं। यानी भाजपा विरोधी आरएसएस के जिस छिपे एजेंडे की बात कहते हैं। वह छुपा एजेंडा है जो अब उतना छुपा नहीं रह गया है। बल्कि अटल सरकार ने जिस तरह से उस पर आवरण चढ़ाया था वह आवरण अब उधड़ने लगा है और प्रज्ञा ठाकुर जैसे लोग पागलपन की हद तक इस एजेंडे को सार्वजनिक करने आमदा है।
भले ही संतोष जी मोदी सरकार के समर्थक है लेकिन वे संघ के उन बातों का भी बेबाकी से विरोध करते हैं जो इस देश व समाज के लिए ठीक नहीं है इसलिए संतोष जी ने साफ कहा कि संघ का कुछ एजेंडा पागलपन के अलावा कुछ नहीं है गोडसे को  स्थापित करने की उनकी मंशा को यह देश भी स्वीकार नहीं करेगा। इसी तरह वे संघ के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को लेकर भी असहमत थे। उनका कहना था कि हम आज ऐसे युग में जी रहे हैं जहां भौतिकता हावी है तब स्वदेशी जैसी पुरानी बातों को नये सिरे से परिभाषित करने की जरूरत है। शायद गांधी जी होते तो वे भी स्वदेशी की कोई नई परिभाषा गढ़ते। क्योंकि अंग्रेजों से आजादी के लिए जिस विदेशी वस्तुओं की होली जलाई गई थी आज वैसा आन्दोलन करना पागलपन के अलावा कुछ नहीं है।
सूरज कुमार की जिन बातों को लेकर मैं चिंतित था वह सब हवा हो गया था और संतोष जी की बातें सुन मैं थोड़ी राहत महसूस कर रहा था। लेकिन संतोष जी संघ के उन एजेंडो का एक-एक कर खुलासा कर रहे थे जो पागलपन के अलावा कुछ नहीं था। शिक्षा में इतिहास को बदलने की कोशिश से लेकर पूरे देश में हिन्दू कानून लागू करने जैसा पागलपन से वैसे भी कुछ हासिल होने वाला नहीं था। ऐसा नहीं है कि पागलपन सिर्फ एकतरफा था। अन्य धर्माे में भी कुछ लोग पागलपन को जी रहे थे। वे उन बातों को लेकर आज भी चिपके बैठे थे जिनका मौजूदा समय में कोई मतलब नहीं था और सच कहूं तो ये सारी बातें सिर्फ सियासी थे।
हकीकत ये है कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजे परिस्थितियों ने देश में सिखों के खिलाफ जो माहौल बनाया उसमें कांग्रेसियों के अलावा नानाजी देशमुख जैसे विद्वान भी थे। 8 नवम्बर 1984 को नानाजी देशमुख  ने इंदिरा जी की हत्या के बाद जार्ज फर्नाडिस के अखबार में जो लेख लिखा वह काफी भड़काऊ था। लेकिन भाजपा राजीव गांधी के बड़ा पेड़ गिरने से धरती हिलती है के भाषण का अंश दिखाते सिख वोट पाने प्रचार करती है लेकिन नानाजी देशमुख को भाजपा की सरकार भारत रत्न तक दे देती है।
दूसरी तरफ जावेद  जैसे कुछ मुस्लिम भी थे जो सलमान खान के गणेशपूजा पर काफिर करार देते रहते थे। वे एक ऐसे खुंटा में बंधे थे जिनके लिए शरिअत कानून ही सब कुछ था और वे इस पर किसी भी तरह की चर्चा पर उनमें पागलपन सवार हो जाता था। कोई यह समझने को तैयार ही नहीं था कि पागलपन में आदमी अंधा होता है।
कहते हैं पाकिस्तान में एक चुटकुला खूब चलता है। कहते हैं खुदा पाकिस्तान के हालात का जायजा लेने आया। उसने याहया खान से पूछा कि मुल्क में सब उल्टा पुल्टा क्यों है? याहया ने जवाब दिया कि यह सब अयूब खान और उनके रिश्तेदारों का किया धरा है। आप इससे निजात दिलाईये और बाकी मुझ पर छोड़ दीजिए। इसलिए खुदा के कहर ने अयुब को मिटा डाला। इसके बाद हालात फिर भी नहीं सुधरे , इसके बाद खुदा फिर लौटे। हालात पहले से भी बदतर थे  तो उन्होंने जुल्फीकार अली भुट्टो से इसकी वजह पूछी और याहया को तिलचट्ठा बनाकर कालीन के नीचे बुहार दिया लेकिन खुदा ने देखा कि कुछ वर्षों बाद हालात और भी बुरे हैं सारे आख्तियार जनरल जिया को दे दिये और ये सिलसिला अब भी चल रहा है और खुदा के वह सवाल अब भी कायम है जो उन्होने याहया खान से पूछा था कि मैं इस मुल्क के लिए इतना कुछ करता हूं पर मुझे एक बात समझ नहीं आती कि लोग मुझसे खुदा जैसे मुहब्बत नहीं करते? पाकिस्तान से लौटकर मेहमूद ने बताया था कि यह पाकिस्तान की हालात को लेकर बना एक चुटकुला है लेकिन सच तो यह है कि पागलपन के इस दौर में यह सब कुछ हर उस शख्स में बैठा है जो अपने धर्म को सबसे श्रेष्ठ मानता है और दूसरे धर्म की आलोचना करता है। यह एक तरह का पागलपन नहीं है तो क्या है।
यह मेरे शहर का सौभाग्य था कि यहां पागलपन के कोई निशान देखने को नहीं मिलता वरना मेरठ से लेकर मुजफ्फरपुर तक पागलपन के निशान आज भी मौजूद है। जले मकान और लाशों की गंध हवा में तैरते रहते हैं। लेकिन ये मेरा शहर है इस शहर में पागलपन की कोशिश को हमेशा ही शिकस्त मिली है।
यही वजह है कि मोहर्रम में जितने सिद्दत से हिन्दू युवा नोहा पढ़ते हैं उतने ही सिद्दत से नवरात्र में मुसलमान युवा देवी मां के भजन न केवल गाते है बल्कि गरबा भी खेलते हैं। बौद्ध, सिख, ईसाई सब एक जुट हैं अभी इस शहर को पागलपन का दौरा नहीं चढ़ा है।

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